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मांसाहारी भोजन के विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाओ: जैन समाज की बॉम्बे HC मे याचिका

कोर्ट ने कहा, नहीं देख सकते हो तो टीवी बंद कर दो..
मुंबई/संवाददाता:
जैन समुदाय के श्री आत्मा कमल लब्धिसूरीश्वरजी जैन ज्ञानानमंदिर ट्रस्ट, शेठ मोतीशा धार्मिक और धर्मार्थ ट्रस्ट, श्री वर्धमान परिवार और व्यवसायी ज्योतिंद्र रमणिकलाल शाह द्वारा ने बॉम्बे हायकोर्ट मे एक याचिका दायर करते हुए कहा की महाराष्ट्र सरकार को प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में मांस और मांस उत्पादों के विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाये औंर आदेश जारी कर निर्देश देने का आग्रह किया था।

याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि उनके बच्चों सहित उनके परिवार को इस तरह के प्रोमो देखने के लिए मजबूर किया जाता है। हालांकि, याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि वे खपत को चुनौती देने की कोशिश नहीं कर रहे हैं।

उसके बाद कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को एक बेहतर याचिका दायर करने के लिए कहते हुए, बॉम्बे हाईकोर्ट ने जनहित याचिका (पीआईएल) याचिका को "वापस ले खारिज कर दिया.अदालत ने याचिकाकर्ताओं को "उचित विवरण के साथ अदालत का दरवाजा खटखटाने की ओर एक बार स्वतंत्रता दी।याचिकाकर्ताओं ने लिशियस, फ्रेशटोहोम फूड्स और मीटिगो जैसी कंपनियों को भी प्रतिवादी के रूप में पेश किया।
मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति माधव जामदार की पीठ ने कहा कि यह मुद्दा संसद विधायक के क्षेत्र में आता है, और कोर्ट यह प्रतिबंध लगाने वाले नियम और कानून नहीं बना सकता है।

जैसे ही याचिका सुनवाई के लिए कोर्ट मे आई, पीठ ने स्पष्ट किया कि अदालत तभी हस्तक्षेप कर सकती है जब अधिकारों का उल्लंघन हो। कोर्ट ने याचिका कर्ता से काहा "सबसे पहले, हमें बताएं, क्या यह हमारे अधिकार क्षेत्र में है? आप हाई कोर्ट से किसी चीज पर प्रतिबंध लगाने के लिए नियम और दिशा-निर्देश तैयार करने को कह रहे हैं। यह विधायिक मंडल को तय करना है।"
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता इस तरह के प्रतिबंध की मांग करने पर कहा की आप दूसरों के अधिकारों का प्रभावी रूप से अतिक्रमण कर रहे हो। "संविधान के अनुच्छेद 19 के उल्लंघन के बारे में सोचो? आप दूसरों के अधिकारों का हनन क्यों कर रहे हैं? 

कोर्टने याचिका करता ओ से कहा की एक तो टीवी बंद करो। लेकिन हम इसे कानून की नजर से ही देखेंगे। आप जो मांग रहे हैं वह कानून द्वारा प्रदान किया जाना है। यहां ऐसा कोई कानून नहीं है, इसलिए आप हमें कानून बनाने के लिए कह रहे हैं।" 
उसके बाद याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में संशोधन के लिए अनुमति मांगी थी। हालांकि, अदालत ने कहा कि सुनवाई के पहले दिन वे संशोधन के लिए समय नहीं मांग सकते और उन्हें बेहतर तैयारी कर के कोर्ट आना चाहिए था। अदालत ने तब याचिकाकर्ता को यह कहते हुए याचिका वापस लेने की अनुमति दी कि याचिकाकर्ता चाहें तो नई याचिका दायर कर सकते हैं। ऐसा भी कहा..
याचिका जैन धार्मिक धर्मार्थ ट्रस्टों और जैन धर्म का पालन करने वाले मुंबई निवासी द्वारा दायर की गई थी, जिसमें कहा गया था कि वह मांसाहारी भोजन की बिक्री या खपत पर प्रतिबंध नहीं चाहता, बल्कि मांस और मांस उत्पादों के विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाना चाहता है।

Report:Lalit lanjewar 

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