पिछले कई दिनों से पोल्ट्री पक्षियों को इंटीग्रेशन कर पोल्ट्री फार्मिंग करने वाली कंपनियों पर किसानों का आरोप है कि उनके वजन में अंतर आ रहा है.
फार्मर्स ने पशुपालन आयुक्त हेमंत वसेकर से मांग की है कि सम्बंधित कंपनियों और व्यापारियों के तराजू की जांच प्राथमिकता से की जानी चाहिए। अनुमान है कि इस पद्धति के माध्यम से राज्य में 9 लाख से अधिक पोल्ट्री व्यापारियों का शोषण किया जा रहा है। अलग अलग कंपनीयो के अलग अलग डिजिटल काटे होते है।
फार्मर्स ने पशुपालन आयुक्त हेमंत वसेकर से मांग की है कि सम्बंधित कंपनियों और व्यापारियों के तराजू की जांच प्राथमिकता से की जानी चाहिए। अनुमान है कि इस पद्धति के माध्यम से राज्य में 9 लाख से अधिक पोल्ट्री व्यापारियों का शोषण किया जा रहा है। अलग अलग कंपनीयो के अलग अलग डिजिटल काटे होते है।
इस काटो मे बहुत डिफरन्स आता है। फार्मर के वजन माप काटे और कंपनी के वजन माप काटो मे १०० से २०० ग्राम का अंतर आता है। यह फरक फार्मर के लिए बहुत नुकसानदायक होता है।

यह मांग मुंबई स्थित वजन माप विभाग के नियंत्रक को पत्र के माध्यम से की गई है।पोल्ट्री व्यवसायियों की समस्याओं के समाधान के लिए पशुपालन विभाग की पहल पर राज्यस्तरीय पोल्ट्री समन्वय समिति का गठन किया गया है। समिति की बैठक मंगलवार (5) को पुणे में हुई. इस मौके पर समिति के सदस्यों ने वसेकर के समक्ष इस क्षेत्र में कई सवाल उठाए.
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इसमें इंटीग्रेशन कंपनियों द्वारा मुर्गे खरीदने के दौरान वजन में अंतर को लेकर कम्पनीकी मनमानी शामिल है। इस मामले को गंभीरता से लेते हुए वसेकर ने वजनमाप विभाग के नियंत्रक को पत्र लिखकर मामले में हस्तक्षेप की मांग की है।
पत्र के मुताबिक राज्य में बड़ी संख्या में व्यक्तिगत और अनुबंधित मुर्गीपालक किसान हैं। अनुबंधित किसान अपने फार्म पर पांच से छह सप्ताह तक मुर्गीपालन करते हैं।और सही वजन होने पर उसे बेच देते हैं। कंपनियां सही वजन के पक्षियों को सीधे फार्म से खरीदती हैं। वहीं कंपनी के व्यापारी कांटों पर तराजू तौलते हैं।
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