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पोल्ट्री फेडरेशन ऑफ इंडिया ने उत्पादन लागत बढ़ने पर जताई चिंता

नई दिल्ली:
पोल्ट्री फेडरेशन ऑफ इंडिया (PFI) की टीम ने आज पोल्ट्री उद्योग से जुड़े अहम मुद्दों पर चर्चा के लिए एक बैठक आयोजित कीया था। बैठक की अध्यक्षता कृषि भवन में सचिव श्रीमती अलका उपाध्याय (IAS) ने की और सह-अध्यक्षता श्रीमती वर्षा जोशी (IAS) एवं पशुपालन आयुक्त डॉ. अभिजीत मित्रा ने की। इस बैठक में PFI के अध्यक्ष श्री रणपाल (बिट्टू) धांडा, उपाध्यक्ष श्री संजीव गुप्ता, सचिव श्री रविंदर संधू, संयुक्त सचिव श्री रिकी थापर, और कार्यालय प्रबंधक श्री जगदीश मौजूद रहे। पशुपालन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी डॉ. एसके दत्ता और डॉ. गगन गर्ग सहित अन्य अधिकारी भी बैठक में शामिल हुए।

बैठक में PFI टीम ने अंडे और चिकन के उत्पादन लागत में हो रही बढ़ोतरी के कारणों पर चर्चा की। टीम ने बताया कि मकई (कॉर्न) की बढ़ती कीमतें इस वृद्धि का मुख्य कारण हैं। PFI ने मांग की कि पशुपालन विभाग ड्यूटी-फ्री GM मकई के आयात की अनुमति प्रदान करे, खासकर नई फसल आने से पहले।
          
टीम ने मकई DDGS (डिस्टिलर्स ड्राइड ग्रेन्स विद सॉल्यूबल्स) के लिए BIS मानकों को लागू करने और सोयाबीन मील में अफ्लाटॉक्सिन की गुणवत्ता को नियंत्रित करने के लिए सख्त नियमों की मांग की। इसके अलावा, टीम ने सुझाव दिया कि एथेनॉल उद्योग को 10% दर विड्रोल कीया जाए, ताकि मकई की जगह चावल का इस्तेमाल हो सके।
                                      
PFI ने यह भी सुझाव दिया कि यदि मकई की कीमतें MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) से 10% अधिक हो जाएं, तो पोल्ट्री किसानों को ड्यूटी-फ्री मकई आयात करने की अनुमति दी जानी चाहिए। साथ ही, जमाखोरी पर सख्त पाबंदी लगाने की आवश्यकता पर जोर दिया।
                                     

PFI टीम ने पोल्ट्री उद्योग के विकास और इसकी चुनौतियों को हल करने के प्रति अपने समर्पण को दोहराते हुए कहा कि यह उद्योग को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए प्रतिबद्ध है।
  
 
1. पोल्ट्री उद्योग में GM मकई की भूमिका
आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) मकई पोल्ट्री फीड का एक महत्वपूर्ण घटक है, जो अपने उच्च पोषण मूल्य, बेहतर कीट प्रतिरोध, और उच्च पैदावार के कारण लोकप्रिय है। यह फीड लागत को कम करता है और पोल्ट्री के स्वास्थ्य में सुधार करता है। हालांकि, भारत सहित कई देशों में GM फसलों के आयात और उपयोग पर नियामक प्रतिबंध लागू हैं।
  

2. मकई की कीमतों का पोल्ट्री उत्पादन पर प्रभाव
मकई पोल्ट्री फीड का 60-70% हिस्सा होता है। इसकी कीमतों में उतार-चढ़ाव का सीधा असर पोल्ट्री उत्पादन की लागत पर पड़ता है। मकई की कीमतों में तेज वृद्धि से अंडे और चिकन की लागत बढ़ जाती है, जिससे किसानों से लेकर उपभोक्ताओं तक पूरी आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित होती है।

3. DDGS और पोल्ट्री फीड में इसकी भूमिका
डिस्टिलर्स ड्राइड ग्रेन्स विद सॉल्यूबल्स (DDGS) एथेनॉल उत्पादन का उप-उत्पाद है, जिसे पोल्ट्री फीड में प्रोटीन और पोषक तत्वों के लिए शामिल किया जाता है। BIS (भारतीय मानक ब्यूरो) के सख्त मानकों का पालन करना DDGS की गुणवत्ता सुनिश्चित करता है, जिससे पोल्ट्री का स्वास्थ्य सुरक्षित रहता है।
                                    
4. पोल्ट्री फीड में अफ्लाटॉक्सिन का खतरा
अफ्लाटॉक्सिन एक विषाक्त यौगिक है, जो मकई और सोयाबीन जैसे अनाजों में पाए जाने वाले कुछ कवकों द्वारा उत्पादित होता है। यह पोल्ट्री की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम कर सकता है, विकास को धीमा कर सकता है और अंडे के उत्पादन को प्रभावित कर सकता है। फीड की गुणवत्ता पर सख्त मानकों और नियमित जांच की आवश्यकता है।

5. एथेनॉल उद्योग और कृषि पर इसका प्रभाव
एथेनॉल उद्योग मकई पर काफी निर्भर है। मकई से एथेनॉल का उत्पादन किसानों को अतिरिक्त आय का जरिया प्रदान करता है, लेकिन इससे फीड के लिए मकई की आपूर्ति घट सकती है, जिससे कीमतें बढ़ती हैं। एथेनॉल और पोल्ट्री उद्योग के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।
                                    
6. जमाखोरी और उसके प्रभाव
मकई जैसे आवश्यक अनाज की जमाखोरी कीमतों को कृत्रिम रूप से बढ़ा सकती है, जिससे पोल्ट्री किसानों को कठिनाई होती है। जमाखोरी पर सख्त नियम लागू करने से बाजार स्थिरता बनी रह सकती है और किसानों को सस्ती दरों पर फीड मिल सकती है।

7. ड्यूटी-फ्री आयात का महत्व
ड्यूटी-फ्री GM मकई का आयात उच्च घरेलू कीमतों या कम आपूर्ति के दौरान फीड की लागत को कम कर सकता है। इससे पोल्ट्री किसान उत्पादन लागत को स्थिर रख सकते हैं और अंडे व चिकन की कीमतों में स्थिरता ला सकते हैं।

8. पोल्ट्री फेडरेशन ऑफ इंडिया की भूमिका
PFI पोल्ट्री किसानों और सरकारी अधिकारियों के बीच एक पुल के रूप में काम करता है। यह आयात प्रतिबंधों में ढील, फीड की गुणवत्ता को नियंत्रित करने और उत्पादन लागत से जुड़े मुद्दों पर नीतिगत उपायों की सिफारिश करता है। इसका उद्देश्य उद्योग की स्थिरता और विकास सुनिश्चित करना है।

वैश्विक परिप्रेक्ष्य
भारत अंडे और चिकन का दुनिया में सबसे बड़ा उत्पादक देशों में से एक है। पोल्ट्री उद्योग देश की अर्थव्यवस्था और खाद्य सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान देता है। मकई की बढ़ती कीमतों, गुणवत्ता मानकों, और नियामक बाधाओं जैसी चुनौतियों के समाधान के लिए सरकार, उद्योग संगठनों और किसानों का सामूहिक प्रयास आवश्यक है।
रिपोर्ट: ललित लांजेवार 


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